बोले वो बोसा-हा-ए-पैहम पर
अरे कम-बख़्त कुछ हिसाब भी है
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पूछते जाते हैं ये हम सब से
गुलशन-ए-ख़ुल्द की क्या बात है क्या कहता है
मिरे मरने से तुम को फ़िक्र ऐ दिलदार कैसी है
हर सुख़न में वो सेहर करते हैं
छुप गया यार ख़ुद-नुमा हो कर
क्या कहूँ क्या है मेरे दिल की ख़ुशी
एक कह कर जिस ने सुननी हो हज़ारों बातें
जान अगर हो जान तो क्यूँ-कर न हो तुझ पर निसार
राज़-ए-दिल लाते हैं ज़बाँ तक हम
उल्फ़त हो किसी की न मोहब्बत हो किसी की
दिल को जानाँ से 'हसन' समझा-बुझा के लाए थे
कुछ हसीनों की मोहब्बत भी बुरी होती है