उल्फ़त हो किसी की न मोहब्बत हो किसी की
पहलू में न दिल हो न ये हालत हो किसी की
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Rahat Indori
Gulzar
Anwar Masood
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जब मिरा महर जल्वा-गर होगा
तुम भी हो ख़ंजर-ए-खुशाब भी है
आईना तुम्हारे नक़्श-ए-पा का
देख आओ मरीज़-ए-फ़ुर्क़त को
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला
कौन कहता है कि आ कर देख लो
एक कह कर जिस ने सुननी हो हज़ारों बातें
जल्वे तिरे जो रौनक़-ए-बाज़ार हो गए
वो मन गए तो वस्ल का होगा मज़ा नसीब
दिल को जानाँ से 'हसन' समझा-बुझा के लाए थे
गुलशन-ए-ख़ुल्द की क्या बात है क्या कहता है
जान अगर हो जान तो क्यूँ-कर न हो तुझ पर निसार