देख आओ मरीज़-ए-फ़ुर्क़त को
रस्म-ए-दुनिया भी है सवाब भी है
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देखे अगर ये गर्मी-ए-बाज़ार आफ़्ताब
किस ने सुनाया और सुनाया तो क्या सुना
एक कह कर जिस ने सुननी हो हज़ारों बातें
गुलशन-ए-ख़ुल्द की क्या बात है क्या कहता है
उन का जल्वा नहीं देखा जाता
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला
पूछते जाते हैं ये हम सब से
इश्क़ में बे-ताबियाँ होती हैं लेकिन ऐ 'हसन'
मिरे मरने से तुम को फ़िक्र ऐ दिलदार कैसी है
हर सुख़न में वो सेहर करते हैं
ओ वस्ल में मुँह छुपाने वाले
राज़-ए-दिल लाते हैं ज़बाँ तक हम