शीशा उठा कर ताक़ से हम ने
ताक़ पे रख दी साक़ी तौबा
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जो ख़ास जल्वे थे उश्शाक़ की नज़र के लिए
जल्वे तिरे जो रौनक़-ए-बाज़ार हो गए
मिल गया दिल निकल गया मतलब
क्या कहूँ क्या है मेरे दिल की ख़ुशी
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला
बोले वो बोसा-हा-ए-पैहम पर
इश्क़ में बे-ताबियाँ होती हैं लेकिन ऐ 'हसन'
आई क्या जी में तेग़-ए-क़ातिल के
उल्फ़त हो किसी की न मोहब्बत हो किसी की
पूछते जाते हैं ये हम सब से
वो मुझ से बे-ख़बर हैं उन की आदत ही कुछ ऐसी है