आई क्या जी में तेग़-ए-क़ातिल के
कि जुदा हो गई गले मिल के
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किस के चेहरे से उठ गया पर्दा
अब्र है गुलज़ार है मय है ख़ुशी का दौर है
चोट जब दिल पर लगे फ़रियाद पैदा क्यूँ न हो
पूछते जाते हैं ये हम सब से
वो मुझ से बे-ख़बर हैं उन की आदत ही कुछ ऐसी है
गुलशन-ए-ख़ुल्द की क्या बात है क्या कहता है
तुम भी हो ख़ंजर-ए-खुशाब भी है
बोले वो बोसा-हा-ए-पैहम पर
मिल गया दिल निकल गया मतलब
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला
जब मिरा महर जल्वा-गर होगा
उन का जल्वा नहीं देखा जाता