बदन Poetry (page 16)
ग़म-ए-हयात मिटाना है रो के देखते हैं
सलीम सिद्दीक़ी
तर्ज़-ए-इज़हार में कोई तो नया-पन होता
सलीम शाहिद
रौशन सुकूत सब उसी शो'ला-बयाँ से है
सलीम शाहिद
मौसम का ज़हर दाग़ बने क्यूँ लिबास पर
सलीम शाहिद
ख़्वाहिश को अपने दर्द के अंदर समेट ले
सलीम शाहिद
दर्द की ख़ुश्बू से सारा घर मोअ'त्तर हो गया
सलीम शाहिद
बुझ गए शो'ले धुआँ आँखों को पानी दे गया
सलीम शाहिद
रंग-ए-ख़ुलूस गंग-ओ-जमन में नहीं रहा
सलीम सरफ़राज़
लौ को छूने की हवस में एक चेहरा जल गया
सलीम कौसर
मैं रात हव्वा
सलीम फ़िगार
आख़िरी पड़ाव
सलीम फ़िगार
ख़ुशबू सा कोई दिन तो सितारा सी कोई शाम
सलीम फ़िगार
ये ख़याल अब तो दिल-आज़ार हमारे लिए है
सलीम फ़राज़
फ़स्ल-ए-जुनूँ में दामन-ओ-दिल चाक भी नहीं
सलीम फ़राज़
क़ुर्ब-ए-बदन से कम न हुए दिल के फ़ासले
सलीम अहमद
ख़ुश-नुमा लफ़्ज़ों की रिश्वत दे के राज़ी कीजिए
सलीम अहमद
नींद से पहले
सलीम अहमद
मजबूरियों का पास भी कुछ था वफ़ा के साथ
सलीम अहमद
इश्क़ और इतना मोहज़्ज़ब छोड़ कर दीवाना-पन
सलीम अहमद
अहल-ए-दिल ने इश्क़ में चाहा था जैसा हो गया
सलीम अहमद
था ख़्वाब में ख़याल को तुझ से मुआमला
सलाहुद्दीन परवेज़
मिरी रात खो गई है किसी जागते बदन में
सलाहुद्दीन परवेज़
चैत
सलाहुद्दीन परवेज़
हवा की चितवन जैसे नैन
सलाहुद्दीन महमूद
ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का
सख़ी लख़नवी
हमें तो हर्फ़-ए-तमन्ना ज़बाँ पे लाना है
सज्जाद सय्यद
छलकी हर मौज-ए-बदन से हुस्न की दरिया-दिली
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ज़हर इन के हैं मिरे देखे हुए भाले हुए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
जलती हवाएँ कह गईं अज़्म-ए-सबात छोड़ दे
सज्जाद बाबर
कलियाँ नीला आसमान ज़ंजीर
साजिदा ज़ैदी
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