बदन Poetry (page 15)

नाला शब-ए-फ़िराक़ जो कोई निकल गया

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

मिरा ये ज़ख़्म सीने का कहीं भरता है सीने से

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

बोसा देते हो अगर तुम मुझ को दो दो सब के दो

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

हमारी काविश-ए-शेर-ओ-सुख़न बे-कार जाती है

सदार आसिफ़

तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है

सरदार अंजुम

क़र्ज़

सारा शगुफ़्ता

चराग़ जब मेरा कमरा नापता है

सारा शगुफ़्ता

रास्ता दे कि मोहब्बत में बदन शामिल है

साक़ी फ़ारुक़ी

मेरी आँखों में अनोखे जुर्म की तज्वीज़ थी

साक़ी फ़ारुक़ी

ख़ाली बोरे में ज़ख़्मी बिल्ला

साक़ी फ़ारुक़ी

दीवार

साक़ी फ़ारुक़ी

रात अपने ख़्वाब की क़ीमत का अंदाज़ा हुआ

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था

साक़ी फ़ारुक़ी

ख़्वाब को दिन की शिकस्तों का मुदावा न समझ

साक़ी फ़ारुक़ी

शबीह-ए-रूह कुछ ऐसे निखार दी गई है

संजय मिश्रा शौक़

गई नहीं तिरे ज़ुल्म-ओ-सितम की ख़ू अब तक

संजय मिश्रा शौक़

फ़ज़ा-ए-ज़ेहन की जलती हवा बदलने तक

संजय मिश्रा शौक़

वो आरज़ू कि दिलों को उदास छोड़ गई

समद अंसारी

पत्थर की नींद सोती है बस्ती जगाइए

समद अंसारी

हम रूह-ए-काएनात हैं नक़्श-ए-असास हैं

समद अंसारी

बग़दाद

सलमान अंसारी

सालिम यक़ीन-ए-अज़्मत-ए-सेहर-ए-ख़ुदा न तोड़

सलीम शुजाअ अंसारी

जुज़ हमारे कौन आख़िर देखता इस काम को

सालिम सलीम

चराग़-ए-इश्क़ बदन से लगा था कुछ ऐसा

सालिम सलीम

ज़माँ मकाँ से भी कुछ मावरा बनाने में

सालिम सलीम

पस-ए-निगाह कोई लौ भड़कती रहती है

सालिम सलीम

ख़ुद अपनी ख़्वाहिशें ख़ाक-ए-बदन में बोने को

सालिम सलीम

दश्त की वीरानियों में ख़ेमा-ज़न होता हुआ

सालिम सलीम

ख़ुशबू का लिबास

सलीमुर्रहमान

कौन कहता है कि यूँही राज़दार उस ने किया

सलीम सिद्दीक़ी

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