बाज़ार Poetry (page 3)
मौसम-ए-गुल में हैं दीवानों के बाज़ार कई
वली उज़लत
हँसूँ जूँ गुल तिरे ज़ख़्मों से उल्फ़त इस को कहते हैं
वली उज़लत
देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का
वली मोहम्मद वली
आरज़ू ले के कोई घर से निकलते क्यूँ हो
वाली आसी
मत समझना कि सिर्फ़ तू है यहाँ
वाजिद अमीर
बेचते क्या हो मियाँ आन के बाज़ार के बीच
वाजिद अमीर
शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
जिधर निगाह उठी खिंच गई नई दीवार
वहीद क़ुरैशी
आगही की दुआ
वहीद अख़्तर
हवा के वार पे अब वार करने वाला है
विकास शर्मा राज़
नम आँखों में क्या कर लेगा ग़ुस्सा देखेंगे
विजय शर्मा अर्श
आशिक़ हुए तो इश्क़ में होश्यार क्यूँ न थे
वारिस किरमानी
निगाहें नीची रखते हैं बुलंदी के निशाँ वाले
तुर्फ़ा क़ुरैशी
जब से गुज़रा है किसी हुस्न के बाज़ार से दिल
त्रिपुरारि
ब-ज़ाहिर गर्म है बाज़ार-ए-उल्फ़त
तिलोकचंद महरूम
ये किस से आज बरहम हो गई है
तिलोकचंद महरूम
वो रंग-रूप मसाफ़त की धूल चाट गई
तौक़ीर रज़ा
कौन से दिल से किन आँखों ये तमाशा देखूँ
तारिक़ राशीद दरवेश
पाँव जब हो गए पत्थर तो सदा दी उस ने
तारिक़ क़मर
चश्म-ए-बीना! तिरे बाज़ार का मेआर हैं हम
तारिक़ क़मर
ख़ुश-अर्ज़ानी हुई है इस क़दर बाज़ार-ए-हस्ती में
तारिक़ नईम
सारी तरतीब-ए-ज़मानी मिरी देखी हुई है
तारिक़ नईम
अगर कुछ भी मिरे घर से दम-ए-रुख़्सत निकलता है
तारिक़ नईम
छत की कड़ियाँ जाँच ले दीवार-ओ-दर को देख ले
तनवीर सिप्रा
इज़्हार-ए-जुनूँ बर-सर-ए-बाज़ार हुआ है
तनवीर अंजुम
मुझ को दिमाग़-ए-गर्मी-ए-बाज़ार है कहाँ
तालिब चकवाली
तन्हा कर के मुझ को सलीब-ए-सवाल पे छोड़ दिया
तफ़ज़ील अहमद
लब-ए-मंतिक़ रहे कोई न चश्म-लन-तरानी हो
तफ़ज़ील अहमद
कब खुलेगा कि फ़लक पार से आगे क्या है
ताबिश कमाल
बंद-ए-ग़म मुश्किल से मुश्किल-तर खुला
ताबिश देहलवी
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