ब-ज़ाहिर गर्म है बाज़ार-ए-उल्फ़त
मगर जिंस-ए-वफ़ा कम हो गई है
Habib Jalib
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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Allama Iqbal
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Gulzar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
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मंदिर भी साफ़ हम ने किए मस्जिदें भी पाक
ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है
ख़िज़ाँ से पेशतर सारा चमन बर्बाद होता है
हमारे वास्ते है एक जीना और मर जाना
तलातुम आरज़ू में है न तूफ़ाँ जुस्तुजू में है
नज़र उठा दिल-ए-नादाँ ये जुस्तुजू क्या है
जब काली घटाएँ झूम कर आती हैं
बाद-ए-तर्क-ए-आरज़ू बैठा हूँ कैसा मुतमइन
इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई
ख़ाक-ए-हिंद
दिल में कहते हैं कि ऐ काश न आए होते
शहीद भगत-सिंह