बुरा हो उल्फ़त-ए-ख़ूबाँ का हम-नशीं हम तो
शबाब ही में बुरा अपना हाल कर बैठे
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होते हैं ख़ुश किसी की सितम-रानियों से हम
हिज्राँ की शब जो दर्द के मारे उदास हैं
वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं
उठाने के क़ाबिल हैं सब नाज़ तेरे
फ़रियाद है किस लिए दर-ए-यज़्दाँ पर
काविशों से अमाँ मिले न मिले
साफ़ आता है नज़र अंजाम हर आग़ाज़ का
शहर से एक तरफ़ दूर बहुत
नज़र उठा दिल-ए-नादाँ ये जुस्तुजू क्या है
सितम कोई नया ईजाद करना
ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है
तस्वीर-ए-रहमत