बाज़ार Poetry (page 5)

फ़जर उठ यार का दीदार करनाँ

सिराज औरंगाबादी

देखा है जिस ने यार के रुख़्सार की तरफ़

सिराज औरंगाबादी

हसीं यादों से ख़ल्वत अंजुमन है

सिकंदर अली वज्द

शहर-ए-एहसास में ज़ख़्मों के ख़रीदार बहुत

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

ले उड़े ख़ाक भी सहरा के परस्तार मिरी

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

तिरी तस्वीर से रहमत बरसती है गुरु-नानक

श्याम सुंदर लाल बर्क़

सू-ए-सहरा ही मुझे ले गई वहशत मेरी

श्याम सुंदर लाल बर्क़

जब समाअ'त ही न हो उस की तो है बेकार शरह

श्याम सुंदर लाल बर्क़

खा के तेग़-ए-निगह-ए-यार दिल-ए-ज़ार गिरा

शऊर बलगिरामी

ये मकीं क्या ये मकाँ सब ला-मकाँ का खेल है

शुजाअत इक़बाल

उस को न ख़याल आए तो हम मुँह से कहें क्या

शुजा ख़ावर

कुछ हश्र से कम गर्मी-ए-बाज़ार नहीं है

शोहरत बुख़ारी

हर लम्हा था सौ साल का टलता भी तो कैसे

शोहरत बुख़ारी

मियाँ बाज़ार को शर्मिंदा करना क्या ज़रूरी है

शोएब निज़ाम

किसी नादीदा शय की चाह में अक्सर बदलते हैं

शोएब निज़ाम

जम्अ कर लीजिए ग़ैरों को मगर ख़ूबी-ए-बज़्म

शिबली नोमानी

यार को रग़बत-ए-अग़्यार न होने पाए

शिबली नोमानी

सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है

ज़ौक़

मज़ा था हम को जो लैला से दू-ब-दू करते

ज़ौक़

रोज़ ख़ूँ होते हैं दो-चार तिरे कूचे में

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

असर-ए-आह-ए-दिल-ए-ज़ार की अफ़्वाहें हैं

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

हालात के कोहना दर-ओ-दीवार से निकलें

शायान क़ुरैशी

न दे साक़ी मुझे कुछ ग़म नहीं है

शौक़ बहराइची

मह-जबीनों की मोहब्बत का नतीजा न मिला

शौक़ बहराइची

हो कैसे किसी वादे का इक़रार रजिस्टर्ड

शौक़ बहराइची

आटा

शौकत थानवी

काट कर जो राह का बूढ़ा शजर ले जाएगा

शर्मा तासीर

झूट पर उस के भरोसा कर लिया

शारिक़ कैफ़ी

दूर फ़ज़ा में एक परिंदा खोया हुआ उड़ानों में

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

लोग क्यूँ ढूँड रहे हैं मुझे पत्थर ले कर

शमीम तारिक़

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