बाज़ार Poetry (page 6)

हँसो न तुम रुख़-ए-दुश्मन जो ज़र्द है यारो

शमीम करहानी

कहानी में छोटा सा किरदार है

शकील जमाली

अब बंद जो इस अब्र-ए-गुहर-बार को लग जाए

शकील जमाली

करने दो अगर क़त्ताल-ए-जहाँ तलवार की बातें करते हैं

शकील बदायुनी

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए

शकील आज़मी

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए

शकील आज़मी

ये सितारे मुझे दीवार नहीं होने के

शाइस्ता सहर

जाने न पाए उस को जहाँ हो तहाँ से लाओ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

दिल देखते ही उस को गिरफ़्तार हो गया

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

शहर में फिरता है वो मय-ख़्वार मस्त

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

इस की क़ुदरत की दीद करता हूँ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हमें याद आवती हैं बातें उस गुल-रू की रह रह के

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हमारी सैर को गुलशन से कू-ए-यार बेहतर था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

आशिक़ों के सैर करने का जहाँ ही और है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

ख़्वाह महसूर ही कर दें दर-ओ-दीवार मुझे

शहज़ाद क़मर

हुस्न बाज़ार की ज़ीनत है मगर है तो सही

शहज़ाद अहमद

गोशा-ए-दिल की ख़मोशी का तमन्नाई मैं

शहज़ाद अहमद

छुप छुप के कहाँ तक तिरे दीदार मिलेंगे

शहज़ाद अहमद

तुझ पे जाँ देने को तय्यार कोई तो होगा

शहज़ाद अहमद

सूरज की किरन देख के बेज़ार हुए हो

शहज़ाद अहमद

कोशिश है शर्त यूँही न हथियार फेंक दे

शहज़ाद अहमद

इस भरे शहर में आराम मैं कैसे पाऊँ

शहज़ाद अहमद

घर जला लेता है ख़ुद अपने ही अनवार से तू

शहज़ाद अहमद

उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए

शहरयार

अहद-ए-हाज़िर की दिल-रुबा मख़्लूक़

शहरयार

उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए

शहरयार

मैं तो ख़ुद बिकने को बाज़ार में आया हुआ हूँ

शाहिद ज़की

यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे

शाहिद ज़की

सीने की मिसाल आग है चाँदी सा धुआँ है

शाहिद शैदाई

मक़्तल में चमकती हुई तलवार थे हम लोग

शाहिद कमाल

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