बाज़ार Poetry (page 8)
बात तो ये है कि वो घर से निकलता भी नहीं
सरफ़राज़ ख़ालिद
ताबिश-ए-गेसू-ए-ख़मदार लिए फिरता है
सरफ़राज़ ख़ालिद
माल-ओ-मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार बिक गए
सरफ़राज़ सय्यद
टूट के पत्थर गिरते रहते हैं दिन रात चटानों से
सरफ़राज़ आमिर
हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे
सदार आसिफ़
बदन से पूरी आँख है मेरी
सारा शगुफ़्ता
ये आह-ओ-फ़ुग़ाँ क्यूँ है दिल-ए-ज़ार के आगे
साक़िब लखनवी
घर
साक़ी फ़ारुक़ी
ये किस ने भरम अपनी ज़मीं का नहीं रक्खा
साक़ी फ़ारुक़ी
भरे बाज़ार में बैठा हूँ लिए जिंस-ए-वजूद
सालिम सलीम
मिरे ठहराव को कुछ और भी वुसअत दी जाए
सालिम सलीम
कुछ भी नहीं है बाक़ी बाज़ार चल रहा है
सालिम सलीम
इक नए शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार की बीमारी है
सालिम सलीम
इतनी क़ुर्बत भी नहीं ठीक है अब यार के साथ
सलीम सिद्दीक़ी
तर्ज़-ए-इज़हार में कोई तो नया-पन होता
सलीम शाहिद
अब्र सरका चाँद की चेहरा-नुमाई हो गई
सलीम शाहिद
दिल तुझे नाज़ है जिस शख़्स की दिलदारी पर
सलीम कौसर
अब फ़ैसला करने की इजाज़त दी जाए
सलीम कौसर
आब ओ हवा है बरसर-ए-पैकार कौन है
सलीम कौसर
ये ख़याल अब तो दिल-आज़ार हमारे लिए है
सलीम फ़राज़
एक तो दुनिया का कारोबार है
सलीम फ़राज़
नींद से पहले
सलीम अहमद
इश्क़ और नंग-ए-आरज़ू से आर
सलीम अहमद
एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई
सलीम अहमद
हज़ार शुक्र कभी तेरा आसरा न गया
सज्जाद बाक़र रिज़वी
तुम ग़लत समझे हमें और परेशानी है
सज्जाद बलूच
तुम ग़लत समझे हमें और परेशानी है
सज्जाद बलूच
लहर उस आँख में लहराई जो बे-ज़ारी की
सज्जाद बलूच
लहर इस आँख में लहराई जो बे-ज़ारी की
सज्जाद बलूच
भटकी है उजालों में नज़र शाम से पहले
सज्जाद बाबर
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