बाज़ार Poetry (page 10)

सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी

साबिर

सच यही है कि बहुत आज घिन आती है मुझे

साबिर

जिंस-ए-वफ़ा का दहर में बाज़ार गिर गया

एस ए मेहदी

कैफ़-ए-सुरूर-ओ-सोज़ के क़ाबिल नहीं रहा

एस ए मेहदी

दिल जो घबराया तो उठ कर दोस्तों में आ गया

रियाज़ साग़र

क़ुलक़ुल-ए-मीना सदा नाक़ूस की शोर-ए-अज़ाँ

रियाज़ ख़ैराबादी

ये गवारा कि मिरा दस्त-ए-तमन्ना बाँधे

रियाज़ ख़ैराबादी

ऐ परी हुस्न तिरा रौनक़-ए-हिंदुस्ताँ है

रिन्द लखनवी

चलती रही उस कूचे में तलवार हमेशा

रिन्द लखनवी

ख़ुद में झाँका तो अजब मंज़र नज़र आया मुझे

रियाज़ मजीद

शायद कभी ऐसा हो कुछ फ़िल्म सा कर जाऊँ

रज़्ज़ाक़ अरशद

दहका पड़ा है जामा-ए-गुल यार ख़ैर हो

रज़ी रज़ीउद्दीन

ये बात तिरी चश्म-ए-फुसूँ-कार ही समझे

रज़ा जौनपुरी

जिंस-ए-गिराँ का मैं हूँ ख़रीदार दोस्तो

रज़ा जौनपुरी

हम को मिली है इश्क़ से इक आह-ए-सोज़-नाक

रज़ा अज़ीमाबादी

इस तरह बज़्म में वस्फ़-ए-रुख़-ए-जानाना करूँ

रज़ा अज़ीमाबादी

दौड़े वो मेरे क़त्ल को तलवार खींच कर

रौनक़ टोंकवी

आलम में न कुछ कसरत-ए-अनवार को देखें

रौनक़ टोंकवी

बहुत रुस्वा क्या इस आशिक़ी ने हर गली मुझ को

रऊफ़ यासीन जलाली

बहुत ख़ूबियाँ हैं हवस-कार दिल में

रउफ़ रज़ा

रस्ते में तो ख़तरात की सुन-गुन भी बहुत है

रऊफ़ ख़ैर

आँखों प अभी तोहमत-ए-बीनाई कहाँ है

रऊफ़ ख़ैर

घर से निकल के आए हैं बाज़ार के लिए

रसूल साक़ी

जंगल की लकड़ियाँ

राशिद अनवर राशिद

तुझ से भी हसीं है तिरे अफ़्कार का रिश्ता

रशीद क़ैसरानी

मुँह किस तरह से मोड़ लूँ ऐसे पयाम से

रशीद क़ैसरानी

है शौक़ तो बे-साख़्ता आँखों में समो लो

रशीद क़ैसरानी

दम-भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी

रशीद क़ैसरानी

दम भर की ख़ुशी बाइस-ए-आज़ार भी होगी

रशीद क़ैसरानी

दरिया को अपने पाँव की कश्ती से पार कर

रशीद निसार

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