बाज़ार Poetry (page 9)

जज़्बा-ए-इश्क़ भी है गर्मी-ए-बाज़ार भी है

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

मियाँ वो जान कतराने लगी है

साजिद प्रेमी

पहले जो हम चले तो फ़क़त यार तक चले

साइम जी

बड़े ख़तरे में है हुस्न-ए-गुलिस्ताँ हम न कहते थे

सैफ़ुद्दीन सैफ़

क्यूँ जल-बुझे कहीं तो गिरफ़्तार बोलते

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

दिल के शजर को ख़ून से गुलनार देख कर

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

जागा है कच्ची नींद से मत छेड़िए उसे

सैफ़ सहसराम

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया

साहिर लुधियानवी

ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया

साहिर लुधियानवी

नूर-जहाँ के मज़ार पर

साहिर लुधियानवी

मुझे सोचने दे

साहिर लुधियानवी

कुछ बातें

साहिर लुधियानवी

ख़ून फिर ख़ून है

साहिर लुधियानवी

फ़नकार

साहिर लुधियानवी

चकले

साहिर लुधियानवी

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया

साहिर लुधियानवी

आवाज़-ए-आदम

साहिर लुधियानवी

काम इस दुनिया में आ कर हम ने क्या अच्छा किया

साहिर देहल्वी

कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र

साग़र सिद्दीक़ी

ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं

साग़र सिद्दीक़ी

ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं

साग़र सिद्दीक़ी

एक नग़्मा इक तारा एक ग़ुंचा एक जाम

साग़र सिद्दीक़ी

दोस्तो दुर्द पिलाओ कि कड़ी रात कटे

साग़र निज़ामी

पस-ए-रौशनी

साग़र ख़य्यामी

उठ चले वो तो इस में हैरत क्या

साग़र ख़य्यामी

प्यास सदियों की है लम्हों में बुझाना चाहे

साग़र आज़मी

दीदा-ओ-दिल मिरी सरकार उठा लाए हैं

सफ़दर सलीम सियाल

तिरी गाली मुझ दिल को प्यारी लगे

सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़

मिलते नहीं हैं जब हमें ग़म-ख़्वार एक दो

सदफ़ जाफ़री

सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी

साबिर

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