कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र
आज वो रौनक़-ए-बाज़ार नज़र आते हैं
Faiz Ahmad Faiz
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जाम-ए-इशरत का एक घोंट नहीं
चश्म को ए'तिबार की ज़हमत
अब न आएँगे रूठने वाले
है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
ऐ हुस्न-ए-लाला-फ़ाम! ज़रा आँख तो मिला
मता-ए-कौसर-ओ-ज़मज़म के पैमाने तिरी आँखें
ऐ अदम के मुसाफ़िरो होशियार
ऐ सितारों के चाहने वालो
ख़ाक उड़ती है तेरी गलियों में
तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ
मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनिया को
राहज़न आदमी रहनुमा आदमी