काँटे तो ख़ैर काँटे हैं इस का गिला ही क्या
फूलों की वारदात से घबरा के पी गया
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हम बनाएँगे यहाँ 'साग़र' नई तस्वीर-ए-शौक़
जिस अहद में लुट जाए फ़क़ीरों की कमाई
नज़र नज़र बे-क़रार सी है नफ़स नफ़स में शरार सा है
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं
ला इक ख़ुम-ए-शराब कि मौसम ख़राब है
मता-ए-कौसर-ओ-ज़मज़म के पैमाने तिरी आँखें
ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है
हूरों की तलब और मय ओ साग़र से है नफ़रत
ऐ अदम के मुसाफ़िरो होशियार
झूम कर गाओ मैं शराबी हैं