मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
ग़म की सियाह रात से घबरा के पी गया
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साक़िया एक जाम पीने से
आओ इक सज्दा करें आलम-ए-मदहोशी में
जाने वाले हमारी महफ़िल से
मौत कहते हैं जिस को ऐ 'साग़र'
फिर उमड आए हैं यादों के सुहाने बादल
नग़्मों की इब्तिदा थी कभी मेरे नाम से
है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
लोग कहते हैं रात बीत चुकी
कलियों की महक होता तारों की ज़िया होता
जो चमन की हयात को डस ले
दुख-भरी दास्तान माज़ी की
मैं ने जिन के लिए राहों में बिछाया था लहू