लोग कहते हैं रात बीत चुकी
मुझ को समझाओ! मैं शराबी हूँ
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वक़्त की उम्र क्या बड़ी होगी
मैं आदमी हूँ कोई फ़रिश्ता नहीं हुज़ूर
है एहतिसाब-ए-वक़्त की लटकी हुई सलीब
अब अपनी हक़ीक़त भी 'साग़र' बे-रब्त कहानी लगती है
चाक-ए-दामन को जो देखा तो मिला ईद का चाँद
है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
नज़र नज़र बे-क़रार सी है नफ़स नफ़स में शरार सा है
एक नग़्मा इक तारा एक ग़ुंचा एक जाम
ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं
ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी है
ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं
छुप के आएगा कोई हुस्न-ए-तख़य्युल की तरह