है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
मेरे नग़्मात को अंदाज़-ए-नवा याद नहीं
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हूरों की तलब और मय ओ साग़र से है नफ़रत
ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा
कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र
हम फ़क़ीरों की सूरतों पे न जा
ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं
कलियों की महक होता तारों की ज़िया होता
एक बहकी हुई नज़र तेरी
भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए
मौत कहते हैं जिस को ऐ 'साग़र'
है एहतिसाब-ए-वक़्त की लटकी हुई सलीब
आह! तेरे बग़ैर ये महताब
हर शय है पुर-मलाल बड़ी तेज़ धूप है