एक बहकी हुई नज़र तेरी
रुख़ नई कोंपलों के मोड़ गई
एक बे-नाम दर्द की ठोकर
चाँदनी के ज़रूफ़ तोड़ गई
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मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
तेरी नज़र का रंग बहारों ने ले लिया
ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं
हम फ़क़ीरों की सूरतों पे न जा
भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए
चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो
अब कहाँ ऐसी तबीअत वाले
हम बनाएँगे यहाँ 'साग़र' नई तस्वीर-ए-शौक़
जो चमन की हयात को डस ले
ख़ता-वार-ए-मुरव्वत हो न मरहून-ए-करम हो जा
हूरों की तलब और मय ओ साग़र से है नफ़रत