जो चमन की हयात को डस ले
उस कली को बबूल कहता हूँ
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मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनिया को
जाम टकराओ! वक़्त नाज़ुक है
एक वा'दा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं
अब कहाँ ऐसी तबीअत वाले
जिस अहद में लुट जाए फ़क़ीरों की कमाई
एक शबनम के क़तरे की तक़दीर को
झिलमिलाते हुए अश्कों की लड़ी टूट गई
अब न आएँगे रूठने वाले
वक़्त की उम्र क्या बड़ी होगी
चाक-ए-दामन को जो देखा तो मिला ईद का चाँद
जब जाम दिया था साक़ी ने जब दौर चला था महफ़िल में
मैं आदमी हूँ कोई फ़रिश्ता नहीं हुज़ूर