जिस अहद में लुट जाए फ़क़ीरों की कमाई
उस अहद के सुल्तान से कुछ भूल हुई है
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Gulzar
Habib Jalib
Wasi Shah
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1118) Peoples Rate This
नग़्मों की इब्तिदा थी कभी मेरे नाम से
हर माह लुट रही है ग़रीबों की आबरू
पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए
साक़ी की इक निगाह के अफ़्साने बन गए
झिलमिलाते हुए अश्कों की लड़ी टूट गई
मआल-ए-नग़्मा-ओ-मातम फ़रोख़्त होता है
ऐ अदम के मुसाफ़िरो होशियार
हूरों की तलब और मय ओ साग़र से है नफ़रत
जाम टकराओ! वक़्त नाज़ुक है
एक बहकी हुई नज़र तेरी
नज़र नज़र बे-क़रार सी है नफ़स नफ़स में शरार सा है
राहज़न आदमी रहनुमा आदमी