ऐ अदम के मुसाफ़िरो होशियार
राह में ज़िंदगी खड़ी होगी
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बात फूलों की सुना करते थे
वक़्त के रंगीं गुल-दस्ते को याद आएगा ठंडा हाथ
इस दर्जा इश्क़ मौजिब-ए-रुस्वाई बन गया
लोग कहते हैं रात बीत चुकी
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
एक वा'दा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं
मेरे तसव्वुरात हैं तहरीरें इश्क़ की
क़ाफ़िले मंज़िल-ए-महताब की जानिब हैं रवाँ
ज़ख़्म-ए-दिल पर बहार देखा है
तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ
है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
बरगश्ता-ए-यज़्दान से कुछ भूल हुई है