हम बनाएँगे यहाँ 'साग़र' नई तस्वीर-ए-शौक़
हम तख़य्युल के मुजद्दिद हम तसव्वुर के इमाम
Allama Iqbal
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Jaun Eliya
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एक बहकी हुई नज़र तेरी
मर गए जिन के चाहने वाले
तेरी नज़र का रंग बहारों ने ले लिया
इस दर्जा इश्क़ मौजिब-ए-रुस्वाई बन गया
काँटे तो ख़ैर काँटे हैं इस का गिला ही क्या
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है
जिस दौर में लुट जाए ग़रीबों कमाई
है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
ऐ कि तख़्लीक़-ए-बहर-ओ-बर के ख़ुदा
तक़दीर के चेहरे की शिकन देख रहा हूँ
साक़िया एक जाम पीने से