ऐ कि तख़्लीक़-ए-बहर-ओ-बर के ख़ुदा
मुझ पे कितना करम किया तू ने
मेरी कुटिया के दीप की ख़ातिर
आँधियों को जनम दिया तू ने
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चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो
ख़ाक उड़ती है तेरी गलियों में
जिन से अफ़्साना-ए-हस्ती में तसलसुल था कभी
ऐ सितारों के चाहने वालो
तिरी नज़र के इशारों से खेल सकता हूँ
कलियों की महक होता तारों की ज़िया होता
जिस दौर में लुट जाए ग़रीबों कमाई
वक़्त की उम्र क्या बड़ी होगी
कोई ताज़ा अलम न दिखलाए
मआल-ए-नग़्मा-ओ-मातम फ़रोख़्त होता है
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है
आओ इक सज्दा करें आलम-ए-मदहोशी में