चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है
ज़रा नक़ाब उठाओ बड़ा अंधेरा है
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फिर उमड आए हैं यादों के सुहाने बादल
ख़ता-वार-ए-मुरव्वत हो न मरहून-ए-करम हो जा
बरगश्ता-ए-यज़्दान से कुछ भूल हुई है
आहन की सुर्ख़ ताल पे हम रक़्स कर गए
है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
मता-ए-कौसर-ओ-ज़मज़म के पैमाने तिरी आँखें
ऐ हुस्न-ए-लाला-फ़ाम! ज़रा आँख तो मिला
ख़ाक उड़ती है तेरी गलियों में
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं
मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनिया को
जब जाम दिया था साक़ी ने जब दौर चला था महफ़िल में