भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए
तुम से कहीं मिला हूँ मुझे याद कीजिए
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लोग कहते हैं रात बीत चुकी
मर गए जिन के चाहने वाले
ज़ख़्म-ए-दिल पर बहार देखा है
हूरों की तलब और मय ओ साग़र से है नफ़रत
क़ाफ़िले मंज़िल-ए-महताब की जानिब हैं रवाँ
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
आहन की सुर्ख़ ताल पे हम रक़्स कर गए
अब अपनी हक़ीक़त भी 'साग़र' बे-रब्त कहानी लगती है
कलियों की महक होता तारों की ज़िया होता
तुम गए रौनक़-ए-बहार गई
दुख-भरी दास्तान माज़ी की
दुनिया-ए-हादसात है इक दर्दनाक गीत