दुनिया-ए-हादसात है इक दर्दनाक गीत
दुनिया-ए-हादसात से घबरा के पी गया
Javed Akhtar
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Gulzar
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Wasi Shah
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जो चमन की हयात को डस ले
दुख-भरी दास्तान माज़ी की
नज़र नज़र बे-क़रार सी है नफ़स नफ़स में शरार सा है
जाम टकराओ! वक़्त नाज़ुक है
वक़्त के रंगीं गुल-दस्ते को याद आएगा ठंडा हाथ
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं
भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए
तुम गए रौनक़-ए-बहार गई
अब कहाँ ऐसी तबीअत वाले
छुप के आएगा कोई हुस्न-ए-तख़य्युल की तरह
ये किनारों से खेलने वाले
एक वा'दा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं