मुस्कुराओ बहार के दिन हैं
गुल खिलाओ बहार के दिन हैं
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तेरी नज़र का रंग बहारों ने ले लिया
ऐ अदम के मुसाफ़िरो होशियार
हर शय है पुर-मलाल बड़ी तेज़ धूप है
एक शबनम के क़तरे की तक़दीर को
मैं ने जिन के लिए राहों में बिछाया था लहू
है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
ज़िंदगी और शराब की लज़्ज़त
राहज़न आदमी रहनुमा आदमी
जिस अहद में लुट जाए फ़क़ीरों की कमाई
ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं
तिरी नज़र के इशारों से खेल सकता हूँ