जिन से अफ़्साना-ए-हस्ती में तसलसुल था कभी
उन मोहब्बत की रिवायात ने दम तोड़ दिया
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आहन की सुर्ख़ ताल पे हम रक़्स कर गए
ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
जो चमन की हयात को डस ले
अब अपनी हक़ीक़त भी 'साग़र' बे-रब्त कहानी लगती है
मर गए जिन के चाहने वाले
मैं आदमी हूँ कोई फ़रिश्ता नहीं हुज़ूर
ऐ सितारों के चाहने वालो
ज़ुल्फ़-ए-बरहम की जब से शनासा हुई
आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़
बे-क़रारी में भी अक्सर दर्द-मंदान-ए-जुनूँ
वक़्त के रंगीं गुल-दस्ते को याद आएगा ठंडा हाथ