आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़
आज फिर तारों भरी रात ने दम तोड़ दिया
Wasi Shah
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(872) Peoples Rate This
जब जाम दिया था साक़ी ने जब दौर चला था महफ़िल में
तक़दीर के चेहरे की शिकन देख रहा हूँ
है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
हूरों की तलब और मय ओ साग़र से है नफ़रत
एक बहकी हुई नज़र तेरी
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं
हर मरहला-ए-शौक़ से लहरा के गुज़र जा
मता-ए-कौसर-ओ-ज़मज़म के पैमाने तिरी आँखें
ये किनारों से खेलने वाले
इस दर्जा इश्क़ मौजिब-ए-रुस्वाई बन गया
अब अपनी हक़ीक़त भी 'साग़र' बे-रब्त कहानी लगती है
दुनिया-ए-हादसात है इक दर्दनाक गीत