बे-क़रारी में भी अक्सर दर्द-मंदान-ए-जुनूँ
ऐ फ़रेब-ए-आरज़ू तेरे सहारे सो गए
जिन के दम से बज़्म-ए-'साग़र' थी हरीफ़-ए-कहकशाँ
ऐ शब-ए-हिज्राँ कहाँ वो माह-पारे सो गए
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चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो
एक बहकी हुई नज़र तेरी
मता-ए-कौसर-ओ-ज़मज़म के पैमाने तिरी आँखें
आहन की सुर्ख़ ताल पे हम रक़्स कर गए
आह! तेरे बग़ैर ये महताब
आओ इक सज्दा करें आलम-ए-मदहोशी में
लोग कहते हैं रात बीत चुकी
जाम टकराओ! वक़्त नाज़ुक है
जिन से अफ़्साना-ए-हस्ती में तसलसुल था कभी
वहशत-ए-दिल ने काँच के टुकड़े
मआल-ए-नग़्मा-ओ-मातम फ़रोख़्त होता है
जब जाम दिया था साक़ी ने जब दौर चला था महफ़िल में