चश्म को ए'तिबार की ज़हमत
दिल को सब्र-ओ-शकेब देता है
आइने में न अक्स-ए-हस्ती देख
आइना भी फ़रेब देता है
Anwar Masood
Javed Akhtar
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Gulzar
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Rahat Indori
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बात फूलों की सुना करते थे
जिस दौर में लुट जाए ग़रीबों कमाई
एक नग़्मा इक तारा एक ग़ुंचा एक जाम
क़ाफ़िले मंज़िल-ए-महताब की जानिब हैं रवाँ
चाँदनी को रसूल कहता हूँ
वक़्त की उम्र क्या बड़ी होगी
एक शबनम के क़तरे की तक़दीर को
वक़्त के रंगीं गुल-दस्ते को याद आएगा ठंडा हाथ
नज़र नज़र बे-क़रार सी है नफ़स नफ़स में शरार सा है
ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं
वो बुलाएँ तो क्या तमाशा हो