ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं
लोग अब ज़िंदगी के मुजरिम हैं
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(626) Peoples Rate This
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं
ला इक ख़ुम-ए-शराब कि मौसम ख़राब है
भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए
ऐ कि तख़्लीक़-ए-बहर-ओ-बर के ख़ुदा
मता-ए-कौसर-ओ-ज़मज़म के पैमाने तिरी आँखें
ख़ता-वार-ए-मुरव्वत हो न मरहून-ए-करम हो जा
जाम-ए-इशरत का एक घोंट नहीं
अब कहाँ ऐसी तबीअत वाले
ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी है
बरगश्ता-ए-यज़्दान से कुछ भूल हुई है
आओ इक सज्दा करें आलम-ए-मदहोशी में