जाम-ए-इशरत का एक घूँट नहीं
तल्ख़ी-ए-आरज़ू की मीना है
ज़िंदगी हादसों की दुनिया में
राह भोली हुई हसीना है
Allama Iqbal
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ये किनारों से खेलने वाले
ख़ाक उड़ती है तेरी गलियों में
रूदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
जिस दौर में लुट जाए ग़रीबों कमाई
ऐ सितारों के चाहने वालो
बे-क़रारी में भी अक्सर दर्द-मंदान-ए-जुनूँ
आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़
तेरी नज़र का रंग बहारों ने ले लिया
हूरों की तलब और मय ओ साग़र से है नफ़रत
चश्म को ए'तिबार की ज़हमत
कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र
ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं