ज़िंदगी जब्र-ए-मुसलसल की तरह काटी है
जाने किस जुर्म की पाई है सज़ा याद नहीं
Anwar Masood
Allama Iqbal
Habib Jalib
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Jaun Eliya
Gulzar
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Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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रंग उड़ने लगा है फूलों का
महफ़िलें लुट गईं जज़्बात ने दम तोड़ दिया
बरगश्ता-ए-यज़्दान से कुछ भूल हुई है
आहन की सुर्ख़ ताल पे हम रक़्स कर गए
ऐ हुस्न-ए-लाला-फ़ाम! ज़रा आँख तो मिला
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
इस दर्जा इश्क़ मौजिब-ए-रुस्वाई बन गया
अब अपनी हक़ीक़त भी 'साग़र' बे-रब्त कहानी लगती है
मुस्कुराओ बहार के दिन हैं
ख़ता-वार-ए-मुरव्वत हो न मरहून-ए-करम हो जा
एक बहकी हुई नज़र तेरी