रंग उड़ने लगा है फूलों का
अब तो आ जाओ! वक़्त नाज़ुक है
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है दुआ याद मगर हर्फ़-ए-दुआ याद नहीं
ये किनारों से खेलने वाले
तिरी नज़र के इशारों से खेल सकता हूँ
तक़दीर के चेहरे की शिकन देख रहा हूँ
मैं ने लौह-ओ-क़लम की दुनिया को
आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़
अब अपनी हक़ीक़त भी 'साग़र' बे-रब्त कहानी लगती है
मर गए जिन के चाहने वाले
चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो
सोने चाँदी की चमकती हुई मीज़ानों में
तेरी नज़र का रंग बहारों ने ले लिया
जाम-ए-इशरत का एक घोंट नहीं