बाज़ार Poetry (page 7)

लाए तो नक़्द-ए-जाँ सर-ए-बाज़ार क्या कहें

शाहिद इश्क़ी

बाज़ार

शाहिद अख़्तर

ऐ निगार-ए-ग़म-ओ-आलाम तिरी उम्र दराज़

शाहिद अहमद शोएब

देखना है कब ज़मीं को ख़ाली कर जाता है दिन

शाहीन अब्बास

बोलते बोलते जब सिर्फ़ ज़बाँ रह गए हम

शाहीन अब्बास

इस दिल में अगर जल्वा-ए-दिल-दार न होता

शाह आसिम

सदियों तुम्हारी याद में शमएँ जलाएँगे

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

टिक के बैठे कहाँ बेज़ार-तबीअत हम से

शफ़ीक़ सलीमी

सजे हैं हर तरफ़ बाज़ार ऐसा क्यूँ नहीं होता

शादाब उल्फ़त

न जाँ-बाज़ों का मजमा था न मुश्ताक़ों का मेला था

शाद अज़ीमाबादी

तन्हा खड़े हैं हम सर-ए-बाज़ार क्या करें

शबनम शकील

पी रहा है ज़िंदगी की धूप कितने प्यार से

शबनम नक़वी

हद्द-ए-सितम न कर कि ज़माना ख़राब है

शबाब ललित

जेहल को इल्म का मेआ'र समझ लेते हैं

शायर लखनवी

ईमा-ए-ग़ज़ल करती हैं मौसम की अदाएँ

शानुल हक़ हक़्क़ी

ज़र्रे ज़र्रे हैं अक्स के हर-सू

सीमा शर्मा मेरठी

लैला का अगर मुझ को किरदार मिला होता

सीमा शर्मा मेरठी

सौदा-ए-इश्क़ के तो ख़ता-वार हम नहीं

सीमा गुप्ता

अब के अजब सफ़र पे निकलना पड़ा मुझे

सय्यद ताबिश अलवरी

दिल तिरी याद में हर लम्हा तड़पता भी नहीं

सय्यद एहतिशाम हुसैन

क़िस्मत के बाज़ार से बस इक चीज़ ही तो ले सकते थे

सय्यद नसीर शाह

जो भी तख़्त पे आ कर बैठा उस को यज़्दाँ मान लिया

सय्यद नसीर शाह

एक रौज़न के अभी किरदार में हूँ मैं

सौरभ शेखर

या रब कहीं से गर्मी-ए-बाज़ार भेज दे

मोहम्मद रफ़ी सौदा

मक़्दूर नहीं उस की तजल्ली के बयाँ का

मोहम्मद रफ़ी सौदा

करता हूँ तेरे ज़ुल्म से हर बार अल-ग़ियास

मोहम्मद रफ़ी सौदा

जो गुल है याँ सो उस गुल-ए-रुख़्सार साथ है

मोहम्मद रफ़ी सौदा

इक अजब कैफ़ियत-ए-होश-रुबा तारी थी

सरवर अरमान

बयान क़िस्सा-ए-बेचारगी किया जाए

सरवर आलम राज़

सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है

सरवत हुसैन

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