अब के अजब सफ़र पे निकलना पड़ा मुझे
अब के अजब सफ़र पे निकलना पड़ा मुझे
राहें किसी के नाम थीं चलना पड़ा मुझे
तारीक शब ने सारे सितारे बुझा दिए
मैं सुब्ह का चराग़ था जलना पड़ा मुझे
यारान-ए-दश्त रौनक़-ए-बाज़ार बन गए
सुनसान रास्तों पे निकलना पड़ा मुझे
हर अहल-ए-अंजुमन की ज़रूरत थी रौशनी
मैं शम-ए-अंजुमन था पिघलना पड़ा मुझे
ज़ालिम बहुत है शिद्दत-ए-एहसास-ए-आगही
अक्सर पराई आग में जलना पड़ा मुझे
राहों के पेच-ओ-ख़म में बला के तिलिस्म थे
चलना बड़ा मुहाल था चलना पड़ा मुझे
आसाँ नहीं था ज़ुल्मत-ए-शब से मुक़ाबला
सर पर जला के आग पिघलना पड़ा मुझे
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