हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए
कुछ हुनर चाहिए बाज़ार में रहने के लिए
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
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धूप से बर-सर-ए-पैकार किया है मैं ने
ज़िंदा रहना है तो साँसों का ज़ियाँ और सही
मैं सो रहा हूँ तिरे ख़्वाब देखने के लिए
फूल का शाख़ पे आना भी बुरा लगता है
धुआँ धुआँ है फ़ज़ा रौशनी बहुत कम है
झूटी मोहब्बत
घर के दीवार-ओ-दर पे शाम ही से
ख़ुद को इतना भी न बचाया कर
मुझ पे हैं सैकड़ों इल्ज़ाम मिरे साथ न चल
ज़मीन ले के वो आए तो घर बनाया जाए
डाका
मैं जानता हूँ ख़ुशामद-पसंद कितना है