लोग क्यूँ ढूँड रहे हैं मुझे पत्थर ले कर

लोग क्यूँ ढूँड रहे हैं मुझे पत्थर ले कर

मैं तो आया नहीं किरदार-ए-पयम्बर ले कर

मुझ को मालूम है मादूम हुई नक़्द-ए-वफ़ा

फिर भी बाज़ार में बैठा हूँ मुक़द्दर ले कर

रूह बेताब है चेहरों का तअस्सुर पढ़ कर

यानी बे-घर हुआ मैं शहर में इक घर ले कर

किस नए लहजे में अब रूह का इज़हार करूँ

साँस भी चलती है एहसास का ख़ंजर ले कर

ये ग़लत है कि मैं पहचान गँवा बैठा हूँ

दार तक मैं ही गया हर्फ़-ए-मुकर्रर ले कर

मोजज़े हम से भी होते हैं पयम्बर की तरह

हम ने माबूद तराशे फ़न-ए-आज़र ले कर

ख़ुद-कुशी करने चला हूँ मुझे रोको 'तारिक़'

ज़ख़्म-ए-एहसास में चुभते हुए नश्तर ले कर

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In Hindi By Famous Poet Shamim Tariq. is written by Shamim Tariq. Complete Poem in Hindi by Shamim Tariq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.