बज़्म Poetry (page 35)

अब दर्द में वो कैफ़ियत-ए-दर्द नहीं है

अली जव्वाद ज़ैदी

ज़र्रा-ए-ना-तापीदा की ख़्वाहिश-ए-आफ़ताब क्या

अली जव्वाद ज़ैदी

नींद आ गई थी मंज़िल-ए-इरफ़ाँ से गुज़र के

अली जव्वाद ज़ैदी

नया मय-कदे में निज़ाम आ गया

अली जव्वाद ज़ैदी

कम-ज़र्फ़ एहतियात की मंज़िल से आए हैं

अली जव्वाद ज़ैदी

जुनूँ से राह-ए-ख़िरद में भी काम लेना था

अली जव्वाद ज़ैदी

जो मक़्सद गिर्या-ए-पैहम का है वो हम समझते हैं

अली जव्वाद ज़ैदी

है ख़मोश आँसुओं में भी नशात-ए-कामरानी

अली जव्वाद ज़ैदी

ग़ैर पूछें भी तो हम क्या अपना अफ़्साना कहें

अली जव्वाद ज़ैदी

दीन ओ दिल पहली ही मंज़िल में यहाँ काम आए

अली जव्वाद ज़ैदी

काटी है ग़म की रात बड़े एहतिराम से

अली अहमद जलीली

उठ के उस बज़्म से आ जाना कुछ आसान न था

अलीम मसरूर

इक जुनूँ कहिए उसे जो मिरे सर से निकला

अलीम मसरूर

चले बज़्म-ए-दौराँ से जब ज़हर पी के

अलीम मसरूर

निगाह-ए-लुत्फ़ क्या कम हो गई है

अलीम अख़्तर

किसी के वादा-ए-फ़र्दा पर ए'तिबार तो है

अलीम अख़्तर

करना पड़ा था जिस के लिए ये सफ़र मुझे

अलीम अफ़सर

उर्दू

आलम मुज़फ्फ़र नगरी

बस एक तिरे ख़्वाब से इंकार नहीं है

आलम ख़ुर्शीद

तेरा हर राज़ छुपाए हुए बैठा है कोई

अख़्तर सिद्दीक़ी

मेरी रुस्वाई अगर साथ न देती मेरा

अख्तर शुमार

ख़्वाहिश-ए-जादा-ए-राहत से निकलता कैसे

अख्तर शुमार

यारो कू-ए-यार की बातें करें

अख़्तर शीरानी

उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है

अख़्तर शीरानी

हमारे हाथ में कब साग़र-ए-शराब नहीं

अख़्तर शीरानी

किस को फ़ुर्सत थी कि 'अख़्तर' देखता मेरी तरफ़

अख़्तर सईद ख़ान

याद आएँ जो अय्याम-ए-बहाराँ तो किधर जाएँ

अख़्तर सईद ख़ान

सैर-गाह-ए-दुनिया का हासिल-ए-तमाशा क्या

अख़्तर सईद ख़ान

दिल की राहें ढूँडने जब हम चले

अख़्तर सईद ख़ान

आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा रहा

अख़्तर सईद ख़ान

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