बज़्म Poetry (page 36)

तुम्हारी बज़्म की यूँ आबरू बढ़ा के चले

अख़तर मुस्लिमी

ये मोहब्बत की जवानी का समाँ है कि नहीं

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

शराब आए तो कैफ़-ओ-असर की बात करो

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

शाइरो हद्द-ए-क़दामत से निकल कर देखो

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

लुटाओ जान तो बनती है बात किस ने कहा

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

कैफ़ियत क्या थी यहाँ आलम-ए-ग़म से पहले

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

फ़सुर्दा हो के मयख़ाने से निकले

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

वही है गर्दिश-ए-दौराँ वही लैल-ओ-नहार अब भी

अख़लाक़ बन्दवी

अभी अश्कों में ख़ूँ शामिल नहीं है

अख़लाक़ बन्दवी

शब-ए-ज़ुल्मत

अख़लाक़ अहमद आहन

हम आज बज़्म-ए-रक़ीबाँ से सुर्ख़-रू आए

अख़लाक़ अहमद आहन

हंगामा-ए-आफ़ात इधर भी है उधर भी

अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी

किस चमन की ख़ाक में फूलों का मुस्तक़बिल नहीं

अकबर हैदरी

तहसीन के लायक़ तिरा हर शेर है 'अकबर'

अकबर इलाहाबादी

वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे

अकबर इलाहाबादी

नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की

अकबर इलाहाबादी

क्या जानिए सय्यद थे हक़ आगाह कहाँ तक

अकबर इलाहाबादी

हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए

अकबर इलाहाबादी

हर इक ये कहता है अब कार-ए-दीं तो कुछ भी नहीं

अकबर इलाहाबादी

फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं

अकबर इलाहाबादी

दिल-ए-मायूस में वो शोरिशें बरपा नहीं होतीं

अकबर इलाहाबादी

दर्द तो मौजूद है दिल में दवा हो या न हो

अकबर इलाहाबादी

अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके

अकबर इलाहाबादी

गुज़र गई है अभी साअत-ए-गुज़िश्ता भी

अजमल सिराज

रास्ते के पेच-ओ-ख़म क्या शय हैं सोचा ही नहीं

अजमल अजमली

ऐ हुस्न जब से राज़ तिरा पा गए हैं हम

अजमल अजमली

ख़ाक में मिलना था आख़िर बे-निशाँ होना ही था

अजीत सिंह हसरत

तू ही इंसाफ़ से कह जिस का ख़फ़ा यार रहे

ऐश देहलवी

बातें न किस ने हम को कहीं तेरे वास्ते

ऐश देहलवी

ज़मीन अपने बेटों को पहचानती है

ऐन ताबिश

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