चाक Poetry (page 13)

अब तो ख़ुद से भी कुछ ऐसा है बशर का रिश्ता

ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

ग़ालिब

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए

ग़ालिब

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए

ग़ालिब

मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है

ग़ालिब

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले

ग़ालिब

जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार

ग़ालिब

जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी

ग़ालिब

जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे

ग़ालिब

हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है

ग़ालिब

गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज

ग़ालिब

जो भर भी जाएँ दिल के ज़ख़्म दिल वैसा नहीं रहता

फ़ुज़ैल जाफ़री

सर-ए-सहरा-ए-दुनिया फूल यूँ ही तो नहीं खिलते

फ़ुज़ैल जाफ़री

तसव्वुर में जमाल-ए-रू-ए-ताबाँ ले के चलता हूँ

फ़ितरत अंसारी

ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़

फ़िराक़ गोरखपुरी

मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले

फ़िराक़ गोरखपुरी

मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था

फ़िराक़ गोरखपुरी

इश्क़ की मायूसियों में सोज़-ए-पिन्हाँ कुछ नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

दीदार में इक-तरफ़ा दीदार नज़र आया

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहार आई गुल-अफ़्शानी के दिन हैं

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

ग़ज़ल के पर्दे में बे-पर्दा ख़्वाहिशें लिखना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

बटन

फ़े सीन एजाज़

गुँध के मिट्टी जो कभी चाक पे आ जाती है

फ़रताश सय्यद

कुश्तगान-ए-ख़ंजर-ए-तस्लीम-रा

फर्रुख यार

दिन गुज़र जाएगा

फर्रुख यार

तेरी ख़ातिर ये फ़ुसूँ हम ने जगा रक्खा है

फ़ारिग़ बुख़ारी

देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी

फ़ारिग़ बुख़ारी

कूज़ा-गर

फ़रहत एहसास

सब ने'मतें हैं शहर में इंसान ही नहीं

फ़रहत एहसास

मेरी मिट्टी का नसब बे-सर-ओ-सामानी से

फ़रहत एहसास

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