चीन Poetry (page 3)

एक बेचैन समुंदर है मिरे जिस्म में क़ैद

सिद्दीक़ मुजीबी

आग देखूँ कभी जलता हुआ बिस्तर देखूँ

सिद्दीक़ मुजीबी

ज़िंदगी गुलशन में भी दुश्वार है तेरे बग़ैर

बाबू सि द्दीक़ निज़ामी

आज बेचैन है बीमार ख़ुदा ख़ैर करे

बाबू सि द्दीक़ निज़ामी

निकलने वाले न थे ज़िंदगी के खेल से हम

शोज़ेब काशिर

राहत के वास्ते है मुझे आरज़ू-ए-मर्ग

ज़ौक़

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे

ज़ौक़

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे

ज़ौक़

ये काएनात तिरा मोजज़ा लगे है मुझे

शहज़ाद रज़ा लम्स

शब वस्ल की भी चैन से क्यूँकर बसर करें

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

देखूँ तो कहाँ तक वो तलत्तुफ़ नहीं करता

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

लब चुप हैं तो क्या दिल गिला-पर्दाज़ नहीं है

शौक़ क़िदवाई

किया जो ए'तिबार उन पर मरीज़-ए-शाम-ए-हिज्राँ ने

शौक़ बहराइची

यही कमरा था जिस में चैन से हम जी रहे थे

शारिक़ कैफ़ी

मोहब्बत की इंतिहा पर

शारिक़ कैफ़ी

बात फाँसी के दिन की नहीं

शारिक़ कैफ़ी

ख़मोशी बस ख़मोशी थी इजाज़त अब हुई है

शारिक़ कैफ़ी

बे-तकल्लुफ़ मिरा हैजान बनाता है मुझे

शारिक़ कैफ़ी

बड़ा है दुख सो हासिल है ये आसानी मुझे

शारिक़ कैफ़ी

मन अरफ़ा नफ़्सहू

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

दर्द-शनास दिल नहीं जल्वा-तलब नज़र नहीं

शमीम करहानी

हर शय तुझी को सामने लाए तो क्या करूँ

शमीम जयपुरी

निराला अजब नक-चढ़ा आदमी हूँ

शमीम अब्बास

चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए

शकील आज़मी

ख़ाक से उठना ख़ाक में सोना ख़ाक को बंदा भूल गया

शाइस्ता मुफ़्ती

न दिन ही चैन से गुज़रा न कोई रात मिरी

शाइक़ मुज़फ़्फ़रपुरी

क्या हुआ गर शैख़ यारो हाजी-उल-हरमैन है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जान आँखों में रही जी से गुज़रने न दिया

शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश

फ़लक से घूरती हैं मुझ को बे-शुमार आँखें

शहज़ाद अहमद

नए युग का ख़्वाब

शहनाज़ नबी

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