चंद्रमा Poetry (page 20)

बे-ख़याली में तख़्लीक़

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

शाख़ों पर जब पत्ते हिलने लगते हैं

सबा नुसरत

यगाना बन के हो जाए वो बेगाना तो क्या होगा

सबा अकबराबादी

उलझनों में कैसे इत्मीनान-ए-दिल पैदा करें

सबा अकबराबादी

जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है

सबा अकबराबादी

है जो दरवेश वो सुल्ताँ है ये मा'लूम हुआ

सबा अकबराबादी

लुटा के राह-ए-मोहब्बत में हर ख़ुशी मैं ने

सबा अफ़ग़ानी

हमें कहती है दुनिया ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर वाले

साइल देहलवी

बसा-औक़ात आ जाते हैं दामन से गरेबाँ में

साइल देहलवी

हम कि चेहरे पे न लाए कभी वीरानी को

सादुल्लाह शाह

हज़ार रंग जलाल-ओ-जमाल के देखे

रूही कंजाही

उसी हसीं से चमन में बहार आज भी है

रोहित सोनी ‘ताबिश’

थका ले और दौर-ए-आसमाँ तक

रियाज़ ख़ैराबादी

कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर

रियाज़ ख़ैराबादी

जो पिलाए वो रहे यारब मय-ओ-साग़र से ख़ुश

रियाज़ ख़ैराबादी

जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह

रियाज़ ख़ैराबादी

आरज़ू भी तो कर नहीं आती

रियाज़ ख़ैराबादी

उम्र में दो फ़ुट बड़े हैं दोस्तो

रियाज़ अहमद क़ादरी

तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना

रिन्द लखनवी

तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे

रिन्द लखनवी

साइलाना उन के दर पर जब मिरा जाना हुआ

रिन्द लखनवी

नहीं क़ौल से फ़ेल तेरे मुताबिक़

रिन्द लखनवी

मुँह न ढाँको अब तो सूरत देख ली

रिन्द लखनवी

क्यूँ-कर न लाए रंग गुलिस्ताँ नए नए

रिन्द लखनवी

गले लगाएँ बलाएँ लें तुम को प्यार करें

रिन्द लखनवी

दिल-लगी ग़ैरों से बे-जा है मिरी जाँ छोड़ दे

रिन्द लखनवी

जब नशात-ए-अलम नहीं होता

रिफ़अत सुलतान

इन्ही सुब्हों में वो इक सुब्ह-ए-नवा याद करो

रिफ़अत अब्बास

मुझे ग़रज़ है सितारे न माहताब के साथ

रहमान फ़ारिस

शब-ओ-रोज़ रक़्स-ए-विसाल था सो नहीं रहा

रेहाना रूही

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