चंद्रमा Poetry (page 19)
गोया ज़बान हाल थी 'साहिर' ख़मोश था
साहिर देहल्वी
फ़ज़ा-ए-आलम-ए-क़ुदसी में है नश्व-ओ-नुमा मेरी
साहिर देहल्वी
दिल की तस्कीन को काफ़ी है परेशाँ होना
साहिर देहल्वी
दरमियान-ए-जिस्म-ओ-जाँ है इक अजब सूरत की आड़
साहिर देहल्वी
चश्म-ए-मस्त-ए-साक़ी से दिल हुआ ख़राब-आबाद
साहिर देहल्वी
बुत-परस्ती के सनम-ख़ाने का आसार न तोड़
साहिर देहल्वी
अयाँ हो रंग में और मिस्ल-ए-बू गुल में निहाँ भी हो
साहिर देहल्वी
हर एक बंदिश-ए-ख़ुद-साख़्ता बयाँ से उठा
सहबा वहीद
हर रात का ख़्वाब
सहबा अख़्तर
कुल जहाँ इक आईना है हुस्न की तहरीर का
सहबा अख़्तर
बचपन की यादों को भुलाए एक ज़माना बीत गया
सहर महमूद
ज़र्द सूरज
सहर अंसारी
तारीकियों का हिसाब
सहर अंसारी
हम अहल-ए-ज़र्फ़ कि ग़म-ख़ाना-ए-हुनर में रहे
सहर अंसारी
अब यही रंज-ए-बे-दिली मुझ को मिटाए या बनाए
सहर अंसारी
काम आई इश्क़ की दीवानगी कल रात को
सग़ीर अहमद सूफ़ी
इश्क़ क्या है ख़ुद-फ़रामोशी मुसलसल इज़्तिराब
सग़ीर अहमद सग़ीर अहसनी
ख़ता-वार-ए-मुरव्वत हो न मरहून-ए-करम हो जा
साग़र सिद्दीक़ी
आहन की सुर्ख़ ताल पे हम रक़्स कर गए
साग़र सिद्दीक़ी
दुम
साग़र ख़य्यामी
गर है नए निज़ाम की तख़्लीक़ का ख़याल
सफ़िया शमीम
मुसव्विर अपने तसव्वुर का ढूँढता है दवाम
सईदुल ज़फर चुग़ताई
किश्त-ए-दयार-ए-सुब्ह से तारे उगाऊँ मैं
सईद शरीक़
गुज़र न जाए समाअ'त के सर्द-ख़ानों से
सईद शरीक़
दुरून-ए-चश्म हर इक ख़्वाब मर रहा है बस
सादिया सफ़दर सादी
क्यूँ भटकती सहरा में घर भी इक ख़राबा था
सादिया रोशन सिद्दीक़ी
सुकूत-ए-मर्ग में क्यूँ राह-ए-नग़्मा-गर देखूँ
सादिक़ नसीम
इस एहतिमाम से परवाने पेशतर न जले
सादिक़ नसीम
मिलते नहीं हैं जब हमें ग़म-ख़्वार एक दो
सदफ़ जाफ़री
वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है
साबिर ज़फ़र
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