चंद्रमा Poetry (page 21)

सफ़र में रस्ता बदलने के फ़न से वाक़िफ़ है

रेहाना रूही

किसी की चश्म-ए-गुरेज़ाँ में जल बुझे हम लोग

रेहाना रूही

मैं हूँ मेरी चश्म-ए-तर है रात है तंहाई है

राज़िक़ अंसारी

आँसू अपनी चश्म-ए-तर से निकलें तो

राज़िक़ अंसारी

सलामत आए हैं फिर उस के कूचा-ओ-दर से

राज़ी अख्तर शौक़

ये बात तिरी चश्म-ए-फुसूँ-कार ही समझे

रज़ा जौनपुरी

उन की निगाह-ए-नाज़ के क़ाबिल कहें जिसे

रज़ा जौनपुरी

इस चश्म ओ दिल ने कहना न माना तमाम उम्र

रज़ा अज़ीमाबादी

इलाही चश्म-ए-बद उस से तू दूर ही रखियो

रज़ा अज़ीमाबादी

उस चश्म ने कि तूतियों को नुक्ता-दाँ किया

रज़ा अज़ीमाबादी

सच कह 'रज़ा' ये किस से लगाई है साट-बाट

रज़ा अज़ीमाबादी

क्या न-दीदों से ज़माने को सरोकार है आज

रज़ा अज़ीमाबादी

हाथ उस के न आया दामन-ए-नाज़

रज़ा अज़ीमाबादी

अब तो तुम भी जवाँ हुए हो देखेंगे दिल को बचाओगे तुम

रज़ा अज़ीमाबादी

ज़हर-ए-चश्म-ए-साक़ी में कुछ अजीब मस्ती है

रविश सिद्दीक़ी

उम्र-ए-अबद से ख़िज़्र को बे-ज़ार देख कर

रविश सिद्दीक़ी

क्या सितम कर गई ऐ दोस्त तिरी चश्म-ए-करम

रविश सिद्दीक़ी

कौन कहता मुझे शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-जुनूँ

रविश सिद्दीक़ी

हुस्न-ए-असनाम ब-हर-लम्हा फ़ुज़ूँ है कि नहीं

रविश सिद्दीक़ी

रब्त हो ग़ैर से अगर कुछ है

रौनक़ टोंकवी

नुस्ख़े में तबीबों ने लिखा और ही कुछ है

रौनक़ टोंकवी

क्या देखते हैं आप झिजक कर शराब में

रौनक़ टोंकवी

जिस तरह अश्क चश्म-ए-तर से गिरे

रौनक़ टोंकवी

हम हैं हुशियार क्या इरादा है

रौनक़ टोंकवी

न जाने कौन सा मंज़र नज़र से गुज़रा था

रौनक़ रज़ा

न जाने कब से मैं गर्द-ए-सफ़र की क़ैद में था

रौनक़ रज़ा

नियाज़-आगीं है और नाज़-आफ़रीं भी

रौनक़ दकनी

इन आँखों में बसा कोई ज़ोहरा-जबीं है अब

रऊफ़ यासीन जलाली

चाक दामन भी हुआ चाक-ए-गरेबाँ की तरह

रऊफ़ यासीन जलाली

ज़िंदगी एहसान ही से मावरा थी मैं न था

रऊफ़ ख़ैर

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