छोड़ दो Poetry (page 4)

मोहब्बत की बुलंदी से कभी उतरा नहीं जाता

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

कभी किसी को जो देखा किसी की बाँहों में

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

फिरे हैं धुन में तिरी हम इधर उधर तन्हा

ज़फ़र अकबराबादी

ना-ख़ुदा छोड़ गए बीच भँवर में तो 'ज़फ़र'

ज़फ़र अज्मी

आ के जब ख़्वाब तुम्हारे ने कहा बिस्मिल्लाह

ज़फ़र अज्मी

वैसे तो थे यार बहुत पर किसी ने मुझे पहचाना था

यूसुफ़ तक़ी

लम्हा लम्हा फैलती जाती है रात

यूसुफ़ तक़ी

आती है फ़ुग़ाँ लब पे मिरे क़ल्ब-ओ-जिगर से

योगेन्द्र बहल तिश्ना

सूरज के साथ साथ उभारे गए हैं हम

यज़दानी जालंधरी

बंदे का पर्दा शान-ए-इलाही छुपी हुई

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

चाह थी मेहर थी मोहब्बत थी

यशब तमन्ना

रौशनी का क़ालिब जब तीरगी में ढलता है

यहया ख़ालिद

जिस्म और साए

यहया अमजद

का'बे की सम्त सज्दा किया दिल को छोड़ कर

वज़ीर अली सबा लखनवी

वाइ'ज़ के मैं ज़रूर डराने से डर गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

बे-ताबी-ए-दिल ने ज़ार-पा कर

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सनम सब हैं तिरे हाथों से नालाँ आज-कल

वज़ीर अली सबा लखनवी

रेत पर छोड़ गया नक़्श हज़ारों अपने

वज़ीर आग़ा

धूप के साथ गया साथ निभाने वाला

वज़ीर आग़ा

'वसीम' देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की तरफ़

वसीम बरेलवी

सभी रिश्ते गुलाबों की तरह ख़ुशबू नहीं देते

वसीम बरेलवी

मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया

वसीम बरेलवी

बहुत से ख़्वाब देखोगे तो आँखें

वसीम बरेलवी

तेरी याद

वसीम बरेलवी

तुझ को सोचा तो पता हो गया रुस्वाई को

वसीम बरेलवी

रंग बे-रंग हों ख़ुशबू का भरोसा जाए

वसीम बरेलवी

नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया

वसीम बरेलवी

न जाने क्यूँ मुझे उस से ही ख़ौफ़ लगता है

वसीम बरेलवी

मैं अपने ख़्वाब से बिछड़ा नज़र नहीं आता

वसीम बरेलवी

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता

वसीम बरेलवी

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